Loading
Kaal Sarp Dosp PujaKaal Sarp Dosp PujaKaal Sarp Dosp Puja
(Mon - Saturday)
info@panditg.in
Ujjain

सनातन धर्म में आदिकाल से ही नागों को देव मानना और उनकी पूजा करने की परंपरा रही है। सनातन धर्म परंपरा में नागों को भगवान शिवजी का आभूषण और भगवान विष्णु का शयन शैया भी माना गया है। प्राचीन काल से ही भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है।

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर क्यों वर्ष में एकबार ही खुलता है ?

आदिकाल से ऐसी मान्यता है कि नागो के देवता नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। यहाँ नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर भगवान शिव एवं माता पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।

Navgrah-Shanti-Puja

पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

क्या है पौराणिक मान्यता उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर की
ऐसा माना जाता है की भगवान शिवजी परीक्षित जी की हत्या के बाद सर्पराज तक्षक से नाराज हो गए थे तब उन्होंने भगवान शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया।

लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

यह मंदिर काफी प्राचीन है।

माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।

नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए रविवार दिनांक 8 अगस्त 2O24 रात 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे और शुक्रवार नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होगी व मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाएंगे एक साल के लिये नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

नागपंचमी पर्व पर बाबा महाकाल और भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग प्रवेश की व्यवस्था की गई है। इनकी कतारें भी अलग होंगी। रात में भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुलते ही श्रद्धालुओं की दर्शन की आस पूरी होगी।

नागपंचमी को दोपहर 12 बजे कलेक्टर पूजन करेंगे। यह सरकारी पूजा होगी। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है। रात 8 बजे श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा पूजन होगा।

Leave A Comment