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जानिए शारदीय नवरात्र के बारे में कुछ विशेष जानकारी

17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक
भुवनेश्वरीसंहिता में कहा गया है“यथा वेदो ह्यनादिर्हि तथा सप्तशती मता”

अर्थात जिस प्रकार वेद अनादि हैं, उसी प्रकार सप्तशती भी अनादि ही है।
व्यासजी ने मानवकल्याण मात्रा से ही मार्कण्डेयपुराण में इसका प्रकाशन किया है।
मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत देवी-माहात्म्य में स्वयं जगदम्बा का आदेश है-
शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी। तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:॥

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिन संशय:॥
अर्थात्
शरद ऋतु के नवरात्र में जो मेरी वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे माहात्म्य (दुर्गा सप्तशती) को भक्तिपूर्वक सुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा।

शरद नवरात्र की ही तरह वसंत नवरात्र में भी सप्तशती पाठ का अतिविशेष महत्व है।
नवरात्रमें दुर्गा सप्तशती को पढ़ने अथवा सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृत में करने पर ही उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। श्रीदुर्गासप्तशतीको भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं, जिसमें 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। मुख्य रूप से ये तीन चरित्र हैं:

प्रथम चरित्र : प्रथम अध्याय : देवी महाकाली की स्तुति

मध्यम चरित्र : 2-4 अध्याय : देवी महालक्ष्मी की स्तुति

उत्तम ‍चरित्र : 5-13 अध्याय : देवी महासरस्वती की स्तुति
दुर्गा सप्तशती को सिद्ध करने की अनेक विधियां हैं जैसे की सामान्य विधि, वाकार विधि, संपुट पाठ विधि, सार्ध नवचण्डी विधि, शतचण्डी विधि।  वाकार विधि :- अत्यंत सरल है जिसको आप घर पर आसानी से कर सकते हो।
प्रथम दिन दुर्गा सप्तशती शुरू करने से पहले नर्वाण मंत्र  “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” का 108 बार पाठ जरूर करें। अर्गला, दुर्गा कवच, कीलक स्तोत्र, देवी के 108 नाम तथा सर्व कामना सिद्ध प्रार्थना प्रतिदिन पाठ के शुरू में पढ़े। पाठ के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर पढ़ें।
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